अजीब दोगले लोग है !

   

      
       कल बकरीद है और मेरा फेसबुक 'इस बकरीद , मिटटी के बकरे काटो ' वाले तमाम लेखो और चित्रों से भर गया है | ट्विटर पर #BloodLessEid जबरदस्त ट्रेंड कर रहा है ! 

    हमारे देश के लोग भी अजीब है , होली आती है तो हंगामा मचाना शुरू कर देते है कि पानी मत बर्बाद करो सूखे रंगों से खेलो | दिवाली में सारे बुद्धिजीवियों को पर्यावरण और वायु प्रदुषण की याद आ जाती है , इस दिवाली पटाखे नहीं जालायेंगे वाले प्रचारों से कान पक जाते है !

     बकरे तो वैसे भी रोज़ कट रहे है , जो लोग मासाहारी है वो त्योहार पर बकरे ही खायेंगे इसमें कौन सी नयी बात है | मुझे नहीं लगता कि जितने बकरे नए साल और अन्य ख़ुशी के मौके पर कटते है उससे बहुत ज्यादा बकरे बकरीद पर कटेंगे ! तो फिर विरोध किस बात का ? त्योहार को उसके स्वरुप में मनाने का या सच में ही लोग पशु और पर्यावरण प्रेमी है ?

    जितने लोग ये नसीहत दे रहे है कि बकरे मत काटो , लगभग सभी के पास चमड़े के दो जूते तो होंगे जिसे वो शान से "Pure Leather" कह के शान बघारते होंगे ! अपनी महंगी गाडियों में "Leather Seatcover" लगाने के लिए हज़ारो खर्च करते होंगे , तो बकरीद में बकरा कट गया तो इसमें क्यों हो हल्ला मच रहा है ?

        ठीक ऐसे ही दिवाली पर, जितने बुद्धिजीवी वायु प्रदुषण का शोर मचाते है सबके पास दो -दो तीन -तीन गाडिया होंगी जिसे वो धडल्ले से चलाते है , तब क्यों नहीं ख्याल आता प्रदुषण का ,तब क्यों नहीं चलते बसों और रेलों में ? घर में सबके AC चौबीस घंटा चलता होगा पर तब ख्याल नहीं आता इनको ! सच में पर्यावरण से प्यार है तो कम करो डीज़ल पेट्रोल फूकना, पेड़ लगाओ और बुद्धि लगाओ !

अगर सच में पशु प्रेम है , तो मांसाहार छोड़ो , चमड़े की चीज़े खरीदना छोड़ो ,और नहीं है तो ढोंग रचाना बंद करो !