जीवन - एक हाथी !

मानो हम सब अंधे है
और जीवन -  एक हाथी !

किसी को पूँछ छू
के रस्सी सी लगती
तो किसी को पाँव छू के खम्भे सी !
कोई पेट छू के सोचता
कि ये छत है
और कोई सूँड़ छू के मानता
वटवृक्ष की लता !

पर सच्चाई कहाँ किसी को पता  ?

जीवन तो मेल है
हर उस बेमेल चीज़ का
जो अकल्पनीय , अविस्मरणीय
आकाश सी  अंतहीन 
और मौसम सी बदलता है  !

भ्रम होता है
कि अब उम्र हो गई है
सब समझता  - सब जानता हूँ मैं
और तभी जीवन की एक करवट
सब ज्ञात को ,अज्ञात बना देती है,
दिन को रात बना देती है !