अटक गया हूँ , लटक गया हूँ , मंजिल से अपनी भटक गया हूँ । Atak gaya hoo latak gaya hoo

अटक गया हूँ , लटक गया हूँ ,
मंजिल से अपनी भटक गया हूँ ।
कुछ अपनों के धक्को से मैं,
गलत जगह पर पटक गया हूँ ।

कुछ चाहत थी मेरी भी अपनी ,
कुछ सपने थे मैंने भी देखे,
पर सच्चाई की कड़वाहट में,
सबकुछ ही मैं गटक गया हूँ । 
 
अटक गया हूँ , लटक गया हूँ ,
मंजिल से अपनी भटक गया हूँ ।

-जिद्दी राजन 











 

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