सिन्दूर


भारत में सिन्दूर का इतिहास उतना ही पुराना है , जितना विश्व में सभ्यता का है | शायद आपको यकीन न हो पर हरप्पा सभ्यता के अवशेष और चित्रों में इसे स्त्रियों के माथे पर देखा जा सकता है | पौराणिक कथा के अनुसार इसे पार्वती माँ ने भगवान् शंकर से विवाह के पश्चात अपने माथे पर धारण किया था और तभी से इसकी परम्परा शुरू मानी जाती है |

जब सिन्दूर को हल्दी में मिलाकर बनाया जाता है तो उसे कुमकुम कहते है और पूजा पाठ में इस कुमकुम का प्रयोग शुभ माना जाता है |
विवाह के समय पुरुष अपनी पत्नी की मांग में मंत्रो के उच्चारण के बीच सिन्दूर या कुमकुम को भरता है और इसी क्षण से उस स्त्री को विवाहित माना जाता है |
एक पति अपनी पत्नी को उसके जीवन काल में सिर्फ विवाह के समय ही सिन्दूर मांग में भर सकता है , उसके बाद स्त्री को प्रत्येक दिन सिन्दूर स्वयं ही लगाना होता है |

सोलह श्रृंगारो में सिन्दूर का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है और अवश्य ही एक स्त्री को बहुत खूबसूरत बनाता है | अगर आप सुहागिन है तो आप अवश्य ही पहने और इसे पहनने में गर्व करें |

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