सुबह खो गई

जब चेहरे पर मेरे
उसकी निगाह पड़ी थी
आँखे मूँद ,
मैंने भी चैन की सांस भरी थी
एक-दो पल को
सुकून बड़ा आया था
शीतल स्पर्श से उसके
हृदय लहू दुगना लाया था !
अब याद नहीं आखिर
उसको कब देखा था,
जो हर दिन का साथी था
वो अब जैसे अनदेखा था !
हर रात, एक ही बात
ठान कर मैं सोता हूँ
कल फिर देखूँगा उसको
यह सोच विकल होता हूँ
पर कहाँ कोई
आलस की बाधा तोड सका है
नींद में सोया - स्वप्न में खोया
कहाँ सफलता जोड़ सका है
सुबह खो गई मेरी
और दुश्मन रात हुई
नौ-दस से पहले कहाँ
मेरे दिन की शुरुआत हुई है !
न जाने उगता सूरज
अब कब देख सकूंगा
 शीतल स्पर्श को
अपने तन से
अब कब भेदूंगा
बस याद है
जब चेहरे पर मेरे
उसकी निगाह पड़ी थी
आँखे मूँद ,
मैंने भी चैन की सांस भरी थी !

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